श्रद्धा

अटूट विश्वास का नाम श्रद्धा  है।  हर एक मनुष्य को अपने जीवन में जो कुछ भी मिलता है वह उसके विश्वास से ही मिलता है।  जहाँ अटूट विश्वास ,वहाँ श्रद्धा है। श्रद्धा यह शब्द आस्तिकतासे जुड़ा हुवा है ऐसा माना जाता है। वास्तव  में कोई भी व्यक्ति आस्तिक हो या नास्तिक उसे जो भी फल मिलता है उसके श्रद्धा के आधार पर  ही मिलता है। जिसकी जैसी श्रद्धा है उसके अनुरूप उसे फल मिलता है। श्रद्धा ही अपने जीवन को स्वर्ग बनाती है , श्रद्धा ही जीवन को नरक बनाती है l
         श्रद्धा सात्विक , राजसिक और तामसिक होती है l इन तीन प्रकारकी श्रद्धा के अनुरूप जीवन निर्माण होते जाता है l सर्वश्रेष्ठ सात्विक श्रद्धा है l जिन्हे अपने जीवन को ऊँचाई पर ले जाना है उन्हें सात्विक श्रद्धा को ही धारण करना अनिवार्य है l सात्विक श्रद्धा ही जीवन में दिव्यता प्रदान करती है l सात्विक श्रद्धा ही ईश्वर की ओर ले जाती है l सात्विक श्रद्धा नारकीय जीवन से बाहर निकालती है l श्रद्धा करो तो सर्वश्रेष्ठ करो जो जीवन को नया आयाम देनेवाली हो , जीवन को सर्व संपन्नतासे भरनेवाली हो l प्रभु के व्दार की ओर ले जानेवाली हो l अनंत से प्रीति करनेवाली हो l हृदय में सद्भावना , प्रेम , शांति की सुगंध फैलानेवाली श्रद्धा हो l मानव को जोड़नेवाली हो।  श्रद्धा में भेदवादीता भाव ना हो। सत्य की और ले जानेवाली श्रद्धा हर एक के दिल में विकसित होनी चाहिए।